प्रलंबासुर उद्धार

 ŚB 10.18.32

पापे प्रलम्बे निहते देवा: परमनिर्वृता: ।

अभ्यवर्षन् बलं माल्यै: शशंसु: साधु साध्विति ॥ ३२ ॥

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